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संविधान और लोकतंत्र की हत्या के खिलाफ उठी हर मुखर प्रखर राष्ट्रवादी आवाज को नमन

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drms news (उमरिया (मानपुर)। कांग्रेस सरकार यानी,आपातकाल,सिक्ख नरसंहार भोपाल गैस त्रासदी घोटाले,परिवारवार- भ्रष्टाचार, हिन्दू विरोधी मानसिकता, संविधान और लोकतंत्र की बड़ी बड़ी बाते करने वाली काग्रेश ही असल मे लोकतंत्र की हत्यारी है। भारत के लोकतंत्र का काला दिवस है 25 जून जिसे कभी भुलाया नही जा सकता। यह विचार व्यक्त करते हुए उमरिया भाजपा जिलाध्यक्ष आशुतोष अग्रवाल आगे कहा कि अपनी कुर्शी और सत्ता बचाने के लिए लोकतंत्र और संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली इंद्रा और उसके दरबारियों ने लोकतंत्र को बंधक बनाने की नाकाम कोशिश की थी, इंद्रा और कांग्रेस के काले कारनामें इतिहास के पन्नो में सदैव के लिए दर्ज हो चुके है।अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए  अंग्रेजी की बनाई पार्टी काग्रेश ने संविधान की आत्मा को अनेकों बार चोट पहुंचाने और तोड़ने का प्रयास किया।  अभिव्यक्ति की आजादी और प्रेस की स्वतंत्रता को छीन लिया गया। लाखों लोगों को जेल में डाल दिया गया। सही मायने में संविधान की रक्षक भाजपा हैं और हमने संविधान की रक्षा की है।

संविधान निर्माताओं की इच्छा थी कि भारत एक लोकतान्त्रिक देश रहे। पर 25 जून, 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और उनकी  मंडली ने लोकतन्त्र के मुख पर कालिख पोतने का कार्य किया था। लोकतंत्र को कुचलने की कोशिश और साजिश की थी।  हलाकि लोकतंत्र के दीवानों ने इंद्रा और उनकी मंडली की साजिशों को नाकाम कर दिया। कांग्रेस ने संविधान के नाम पर अंबेडकर जी के सपनों से बार-बार विश्वासघात किया। 

भाजपा जिलाध्यक्ष ने बताया कि आपातकाल की कालिख, जिसे  देश स्मरण कर रहा है कांग्रेस की ही देन थी।अब कांग्रेस देश में अपने विखरते जनाधार को बचाने के लिए अंबेडकर जी के नाम की आड़ में अपने पुराने पापों को छिपाने की कोशिश कर रही है। इससे तय हो गया कि कांग्रेस बाबा साहब और उनके विचारों की विरोधी पार्टी है, कांग्रेस आरक्षण विरोधी और संविधान विरोधी पार्टी है।कांग्रेस ने सावरकर जी का भी अपमान किया, कांग्रेस ने आपातकाल लगाकर संविधान के सारे मूल्यों की धज्जियां उड़ा दी, नारी सम्मान को भी वर्षों तक दरकिनार किया, न्यायपालिका का हमेशा अपमान किया, सेना का अपमान किया। शहीदों का अपमान किया और भारत की भूमि तक को संविधान तोड़कर दूसरे देशों को देने की हिमाकत कांग्रेस के शासन में हुई।

इंद्रा उ.प्र. से सांसद निर्वाचित हुईं थी।  पर उनके निर्वाचन क्षेत्र में हुई धांधली के विरुद्ध उनके प्रतिद्वन्द्वी राजनारायण ने प्रयाग उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया था। न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने साहसी निर्णय देते हुए इंदिरा गांधी के निर्वाचन को निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। वस्तुतः आपातकाल के लिए मंत्रिमंडल की सहमति आवश्यक थी।  पर इंदिरा, संजय और उनके दरवारिओ ने कुछ नहीं देखा। 

अगले दिन प्रातः मंत्रियों से हस्ताक्षर की औपचारिकता भी पूरी करा ली गयी। आपातकाल लगते ही नागरिकों के मूल अधिकार स्थगित हो गये। विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंस दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लागू कर दी गयी। सारे देश के अधिकारों पर ताला जड़ दिए गए इसके बाद इंदिरा  ने संविधान में ऐसे अनेक संशोधन कराये, जिससे प्रधानमंत्री पर कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था। 39 वां संशोधन सात अगस्त, 1975 को संसद में केवल दो घंटे में ही पारित कर दिया गया। विपक्षी नेता जेल में थे  ऐसे में विरोध कौन करता  आठ अगस्त को यह राज्यसभा में भी पारित हो गया। नौ अगस्त को अवकाश के बावजूद सभी राज्यों की विधानसभाओं के विशेष सत्र बुलाकर वहां भी इसे पारित करा दिया गया। दस अगस्त  को राष्ट्रपति ने भी सहमति दे दी और इस प्रकार यह कानून बन गया।

इस तेजी का कारण यह था कि 11 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई होनी थी। नये कानून से इंदिरा गांधी न्यायालय से भी ऊंची हो गयीं और सुनवाई नहीं हो सकी। पूरा देश कांग्रेसी गुंडो की तानाशाही की गिरफ्त में आ गया; पर समय सदा एक सा नहीं रहता। धीरे-धीरे लोग इनके आतंक से उबरने लगे। संघ द्वारा भूमिगत रूप से किये जा रहे प्रयास रंग लाने लगे। लोगों का आक्रोश फूटने लगा।आपातकाल और प्रतिबन्ध के विरुद्ध हुए सत्याग्रह में एक लाख से अधिक स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारी दी। लोकतन्त्र की इस हत्या के विरुद्ध विदेशों में भी लोग इंदिरा गांधी से प्रश्न पूछने लगे।

श्री अग्रवाल ने कहा कि आज संविधान की दुहाई देने वालों से मैं पूछना चाहता हू क्या आपातकाल के लिए संसद की सहमति ली गई थी?क्या मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई गई थी?- क्या देशवासियों को, विपक्ष को, भरोसे में लिया गया था?लोकतंत्र की बात करने वाले लोगों से मैं पूछना चाहता हूं कि आप वही पार्टी और उसी पार्टी के जुड़े हुए लोग हो, जिन्होंने लोकतंत्र के रक्षक की भूमिका से लोकतंत्र के भक्षक का काम किया था।ये बात देश की जनता को कभी नहीं भूलनी चाहिए। विशेषकर इस देश के किशोर और युवाओं को ये बात नहीं भूलनी चाहिए।आज बहुत सारे लोग संविधान की दुहाई देते हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि किस पार्टी से आते हो, किस अधिकार से संविधान की बात करते हो।

सुबह सुबह ऑल इंडिया रेडियो से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी की आवाज आई कि राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की।जो लोग संविधान की दुहाई देते हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या इसके लिए संसद की सहमति ली गई थी?, जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, अटल जी, आडवाणी जी, नानाजी देशमुख, फर्नांडिस जी, आचार्य कृपलानी जैसे वरिष्ठ नेता ये सब जेल की काल कोठरियों में डाल दिए गए।किसी को कोई मौका नहीं दिया गया और आने वाले समय में गुजरात और तमिलनाडु की गैर कांग्रेसी सरकारों को भी गिराने का काम किया गया।

इससे इंदिरा गांधी पर दबाव पड़ा। उसके गुप्तचरों ने सूचना दी कि देश में सर्वत्र शांति हैं और चुनाव में आपकी जीत सुनिश्चित है। इस भ्रम में इंदिरा गांधी ने चुनाव कराना उचित समझा। पर यह दांव उल्टा पड़ा। चुनाव में उसकी पराजय हुई और दिल्ली में जनता पार्टी की सरकार बन गयी। मां और पुत्र दोनों चुनाव हार गये। इस शासन ने वे सब असंवैधानिक संशोधन निरस्त कर दिये, जिन्होंने प्रधानमंत्री को न्यायालय से भी बड़ा बना दिया था। 

और अंत जिलाध्यक्ष ने कहा कि इस प्रकार इंदिरा गांधी की तानाशाही समाप्त होकर देश में लोकतन्त्र की पुनर्स्थापना हुई। 25 जून 1975 आजाद भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय, जब संविधान एवं लोकतंत्र का गला घोंट कर आपातकाल लागू किया एवं सरकार के विरोध में उठ रही हर आवाज को बंदूक की बट से कुचला गया और जेल की काल कोठरी में बंद कर दिया। भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के इतिहास के इस काले अध्याय "आपातकाल" के खिलाफ उठी हर मुखर आवाज को कोटिशः नमन। 


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