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drms news (शहडोल)। विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत जिले में कृषि विभाग तथा सहयोगी विभागों कृषि विज्ञान केन्द्र, पशुपालन विभाग, उद्यानिकी तथा मत्स्यपालन विभाग के अमले द्वारा बुढ़ार, सोहागपुर तथा गोहपारू जनपद पंचायतों के तीन-तीन ग्रामों में कृषि शिविरों का आयोजन किया जा रहा हैं।
गोहपारू जनपद पंचायत के ग्राम बरकोड़ा में कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी.के. प्रजापति के मार्गदर्शन में कृषि शिविर का आयोजन कर किसानों को कृषि संबंधी जानकारी दी गई तथा किसानों की समस्याओं का समाधान किया गया।
शिविर में किसानों को खेती को आधुनिक बनाने के लिए महत्वपूर्ण सलाह दी गई। खेती की उन्नत तकनीक, फसलों के आधुनिक और उन्नत बीज, कृषि में किए जा रहे नवाचार, प्राकृतिक खेती, फसल विविधीकरण के संबंध में भी किसानों को जानकारी दी गई।
कृषि शिविर में कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी.के. प्रजापति ने किसानों को हरी खाद के फायदे के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि हरी खाद मृदा स्वास्थ्य के लिए वरवान है। खेतों के स्वास्थ्य को लेकर चारों ओर गंभीर चिन्ता होने लगी है। मृदा स्वास्थ्य बिगड़ने का यही सिलसिला चलता रहा तो एक समय ऐसा आयेगा कि धीरे-धीरे हमारे खेतों से सौंधी महक आनी ही बन्द हो जायेगी और जिससे खेती करना एक गंभीर चुनौती हो जायेगी।
लगातार फसलोत्पादन एवं वैज्ञानिक आधार पर फसलचक्र को नहीं अपनाने के कारण मृदा में नाइट्रोजन एवं कार्बनिक पदार्थों की निरंतर कमी होती जा रही है। इससे मृदा की उर्वरा शक्ति की कमी होने के साथ-साथ उत्पादकता में भी कमी आई है।
हमारे देश में गोबर जैसे कार्बनिक पदार्थ को उपले बनाकर अधिकांश मात्रा को ईंधन के रूप में जला दिया जाता है तथा शेष मात्रा का खाद के रूप में उपयोग किया जाता है, जो कि पर्याप्त नहीं है। कृषि में प्राचीनकाल से ही मृदा में नाइट्रोजन व कार्बनिक पदार्थ के स्तर को बढ़ाने के लिए गोबर की खाद के साथ-साथ हरी खाद का प्रयोग किया जाता रहा है, ताकि मृदा की उर्वरा शक्ति को आसानी से बढ़ाने के लिए हरी खाद एक सस्ता एवं आसान उपाय है। पिछले कुछ वर्षों से इसमें भारी कमी देखने को मिली है।
फसलों, सब्जियों एवं पेड़-पौधों की पत्तियों को अलग कर हरी अवस्था में ही हल या किसी अन्य यंत्र से खेत में मिलाने पर सड़ने-गलने के बाद तैयार खाद को ही हरी खाद कहा जाता है। हरी खाद की खेती एक शुष्क फसल के रूप में खेत की उपजाऊ शक्ति, भूमि के पोषक और जैविक पदार्थों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है। रासायनिक उर्वरकों के पर्याय के रूप में हम जैविक खादों जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद आदि को उपयोग कर सकते हैं। इनमें हरी खाद सबसे सरल व अच्छा प्रयोग है।
गोबर की उपलब्धता पर भी हमें निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। हमें हरी खाद के यथासंभव उपयोग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हरी खाद के लिए प्रयुक्त होने वाली फसलें हरी खाद उत्पादन के लिए उपयुक्त प्रमुख निम्नलिखित फसलों का चयन कियाजा सकता है। जैसे ढँचा सनई, मूंग, उड़द, लोबिया, ग्वार, बरसीम इत्यादि ।
हरी खाद देने की विधियां हमारे देश में मृदा व जलवायु के आधार पर अनेक विधियों से हरी खाद का उत्पादन किया जाता है। इसके लिए उन क्षेत्रों में अपनाया जाता है, जहां पानी की कोई समस्या नहीं है और सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं ऐसे क्षेत्रों में हरी खाद फसल की बुआई करने के बाद उसे उचित समय आने पर उसी खेत में दबा दिया जाता है।
इन-सीटू विधि में फसल की अकेली या दूसरी फसल के साथ मिश्रित रूप में जुताई की जा सकती है। इस विधि में मूंग व उड़द की फलियों को पकने के बाद तुड़ाई करके भी फसल को खेत में दबाया जा सकता है। हरी पत्तियों से तैयार खाद इस विधि को उन क्षेत्रों में अपनाया जाता है, जहां पानी की समस्या अधिक हो और वर्षा समय पर नहीं होती हो।
कृषि शिविर में सहायक कृषि यंत्री सुदामा बैगा ने किसानों को बताया कि हरी खाद दलहनी फसलों की जड़ों में उपस्थित सहजीवी जीवाणु ग्रंथियां वातावरण में उपस्थित मुक्त नाइट्रोजन को यौगिकीकरण द्वारा पौधों को उपलब्ध करवाती हैं। इससे मृदा में कार्बनिक पदार्थ की वृद्धि होती है, जिससे सूक्ष्मजीवों की सक्रियता में बढ़ोत्तरी होती है। हरी खाद से मृदा को कई सूक्ष्म व वृहद पोषक तत्व प्राप्त होते हैं. जैसे- नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम इत्यादि ।
मृदाजनित रोगों की रोकथाम। मृदा के भौतिक गुणों जैसे-संरचना, जलधारण क्षमता में वृद्धि। अम्लीय मृदा में फॉस्फोरस स्थिरीकरण में कमी। मृदा सतह में पोषक तत्वों का संरक्षण होता है तथा अगली फसलों को पोषक तत्वों की पुनः प्राप्ति होती है।
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