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drms news (शहडोल)। कामरेड धर्मराज महापात्र सहसचिव, ऑल इण्डिया इंश्योरेंस एम्पलाइज एसोसियेशन एवं महासचिव, सेंट्रल जोन इंश्योरेंस एम्पलाइज एसोसियेशन ने शुभम पैलेस के सभागार में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए शहडोल डिविजन इंश्योंरेस एम्पलाइज यूनियन 30 वां अधिवेशन के संबंध में पत्रकारों को विस्तार से बताया कि आल इण्डिया इंश्योरेंस एम्प्लाइज एसोसिएसन एल.आई.सी.कर्मचारियों के 85 कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाला एकमात्र संगठन है.
ए.आई.आई.ई.ए. राष्ट्रीयकृत बीमा उद्योग की प्रगति के साथ ही देश की आम जनता की घरेलू बचत को संरक्षित कर देश के दीर्घकालिक विकास के लिए उपयोग किये जाने तथा आम जनता को जोखिम से सुरक्षा उपलब्ध कराने के दोहरे दायित्व निर्वहन के उद्देश्य से 1956 को निर्मित इस संस्थान की रक्षा के लिए सतत सकारात्मक भूमिका अदा करती रही है .
कामरेड धर्मराज महापात्र ने आगे बताया कि अभी हाल ही में देश की वित्त मंत्री के द्वारा पेश किए गए बजट में बीमा क्षेत्र में एफडीआई सीमा को मौजूदा 74% से बढ़ाकर 100% करने की घोषणा की गई है । भारत सरकार का यह निर्णय पूरी तौर पर अनुचित है और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए कीमती संसाधनों को जुटाने और अपने नागरिकों के प्रति राज्य के दायित्व को पूरा करने के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे। आल इंडिया इंश्योरेंस एम्पलाइज एसोसियेशन की ओर से हमने इसे वापस लेने की मांग की है और इसके खिलाफ देशभर में प्रदर्शन आयोजित किये हैं.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1999 में आईआरडीए विधेयक के पारित होने के साथ ही बीमा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण समाप्त किया गया था। इस अधिनियम के जरिये उसके बाद निजी भारतीय पूंजी को विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी में बीमा उद्योग में काम करने की अनुमति दी। उस समय एफडीआई की सीमा 26 प्रतिशत तक सीमित था, फिर इसे बढाकर वर्तमान सरकार ने ही पहले 49 और तब से इसे बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया है और इसे वे अब 100% करने की घोषणा किये हैं. सरकार ने यह प्रस्ताव भी वित्त विधेयक के साथ पेश किया है जबकि इसका वित्त विधेयक से कोई संबंध नहीं है. याने सरकार इस महत्वपूर्ण विषय पर भी संसद में कोई चर्चा नहीं चाहती है .
कामरेड महापात्र ने कहा वर्तमान में विदेशी भागीदारों के साथ बड़ी संख्या में निजी बीमा कंपनियाँ जीवन और गैर-जीवन बीमा उद्योग दोनों क्षेत्र में काम कर रही हैं। इन कंपनियों के लिए अपने व्यवसाय को चलाने के लिए पूंजी कभी भी बाधा नहीं रही हैक्योंकि इनका स्वामित्व बड़े व्यापारिक घरानों के पास है जो विश्व के शीर्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी करते हैं। लेकिन फिर भी 74% की वर्तमान सीमा के बावजूद हकीकत मेंबीमा में कुल एफडीआई नियोजित पूंजी का लगभग 32 प्रतिशत ही है। इस मामले मेंयह आश्चर्यजनक है कि सरकार ने विदेशी पूंजी को भारत में काम करने की पूरी स्वतंत्रता देने का कदम क्यों उठाया है। यदि कोई किसी कंपनी में विदेशी साझेदार इससे अलग होकर कोई नई कंपनी बनाने का फैसला कर लेगा तो इस निर्णय से भारतीय कंपनियों और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर परिणाम होंगे। इससे मौजूदा कंपनियों को अपने कब्जे में लेने के लिए भी उनके द्वारा शत्रुतापूर्ण बोलियाँ भी लगने लगेंगी।
हमारा दृढ़ विश्वास है कि विदेशी पूंजी को पूर्ण स्वतंत्रता और हमारी घरेलू बचत यानि वित्तीय स्रोत तक अधिक पहुंच प्रदान करने से बीमा उद्योग का व्यवस्थित विकास बाधित होगा क्योंकि उनके द्वारा आम लोगों और व्यवसाय को आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने के बजाय लाभ पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। जिसका भारतीय समाज के हाशिए पर पड़े वंचित वर्गों के हितों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावाविदेशी पूंजी कभी भी घरेलू बचत का विकल्प नहीं हो सकती। इस स्थिति में घरेलू बचत को विदेशी पूंजी को सौंपना आर्थिक या सामाजिक किसी भी रूप में कोई समझदारी भरा कदम नहीं है। यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत एक कल्याणकारी राज्य है इसलिए आवश्यक रूप से आर्थिक विकास के लिए बचत पर राज्य का अधिक नियंत्रण रहना चाहिए जो उसके सभी नागरिकों के लिए भी लाभकारी है।
उन्होंने शंका जताते हुए यह भी बताया कि ऐसी भी सूचनाएं हैं कि सरकार मौजूदा बीमा कानूनों में संशोधन करके एक व्यापक कानून लाने का इरादा रखती है। ये संशोधन देश को 1956 से पहले की स्थिति में ले जाएंगे, जिसने सरकार को जीवन बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण करने के लिए मजबूर किया था। तत्कालीन सरकार ने इस चेतावनी पर ध्यान दिया था कि बीमा को वित्तपोषकों के नियंत्रण में नहीं आने दिया जाना चाहिए। लेकिन मौजूदा सरकार अब बीमा क्षेत्र को वित्तपोषकों के और बैंकर के हाथों में सौंप रही है, जिससे आम लोगों की बचत को बड़ा खतरा पैदा हो रहा है।
यह निंदनीय है कि बजट में आर्थिक विकास को गति देने के लिए आबादी के एक छोटे से हिस्से पर भरोसा किया गया है, जबकि बहुसंख्यक वर्ग के हितों की अनदेखी की गई है। इसने कॉर्पोरेट क्षेत्र पर समुचित स्तर का कर लगाने से इनकार कर दिया। जबकि आर्थिक सर्वेक्षण ने इस तथ्य की ओर इशारा किया है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र का मुनाफा बढ़ रहा है और उसकी तुलना में श्रमिकों का वेतन स्थिर है। बजट में श्रमिकों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि इसलिए हम बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा बढ़ाने के फैसले के खिलाफ अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है और सरकार यदि विरोध के बाद भी संसद में पारित करेगी तो उसके खिलाफ हड़ताल पर जाने का निश्चय किया है हमने साथ ही यह भी कहा कि सरकार को बीमा कानून जैसे बीमा अधिनियम 1938 एलआईसी अधिनियम 1956 और आईआरडीए अधिनियम 1999 में संशोधन करने के प्रतिगामी प्रस्ताव के खिलाफ भी अपनी आपत्ति दर्ज की है और सरकार से अपनी आर्थिक नीतियों को कॉर्पोरेट पक्षधर से हटाकर जन-केंद्रित उपायों की ओर मोड़ने की मांग की है। हमारा स्पष्ट मानना है कि सरकार को कॉर्पोरेट क्षेत्र के मुनाफे से ऊपर आम लोगों के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
हमने एल आई सी की प्रगति के बाद भी घटते कार्यबल पर चिंता व्यक्त करते हुए एल आई सी में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी संवर्ग में नई भर्ती की मांग की है, ताकि बीमा धारकों को बेहतर सेवा को और सक्षम बनाया जा सके और देश के बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवाओं को रोजगार का अवसर भी मिल सके. हमने साथ ही प्रचंड बहुमत का प्रतिनिधित्व करने के बाद भी हमारे संगठन को मान्यता न देने का विरोध किया है और इन दोनों मांगों पर 20 फरवरी को बहिर्गमन हड़ताल भी की थी।
कामरेड श्री महापात्र आरोप लगाया कि चेतावनी दी कि देश के श्रमिक वर्ग के लम्बे संघर्ष के बाद प्राप्त श्रम कानूनों को भी केंद्र सरकार बदलने की चेष्टा कर रही है, जिसके विरुद्ध देश के सभी श्रम संगठनों ने 18 मार्च को दिल्ली में राष्ट्रिय कन्वेशन किया और उसमें 20 मई को देशव्यापी हड़ताल का निश्चय किया है। हम साधारण बीमा की सार्वजानिक क्षेत्र की सभी कम्पनियों को एक करने तथा वहां के कर्मचारियों को भी उनके लंबित वेतन संशोधन को शीघ्र पूर्ण किये जाने की भी मांग करते है.
पत्रकार वार्ता में कामरेड अब्दुल हफीज खान अध्यक्ष एसडीआईईयू, कामरेड स्वर्णेन्दु दास महासचिव एसडीआईईयू सहित अन्य कामरेड उपस्थित रहे।
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